कोरोना लॉकडाउन: जमलो चार दिन पैदल चलने के बाद घर नहीं पहुंच सकी क्योंकि...

  • आलोक प्रकाश पुतुल
  • रायपुर से बीबीसी हिंदी के लिए
जमलो के पिता आंदोराम मड़कम और मां सुकमति की तस्वीर

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इमेज कैप्शन, जमलो के पिता आंदोराम मड़कम और मां सुकमति की तस्वीर

छत्तीसगढ़ के आदेड़ गांव की रहने वाली 12 साल की बच्ची जमलो मड़कम जब तेलंगाना से मज़दूरों के एक काफ़िले के साथ अपने घर के लिये निकली थी तो उम्मीद थी कि जल्दी ही वह अपने घर पहुंच जायेगी.

अपनी मां-बाप की इकलौती बेटी जमलो मड़कम चार दिनों तक घने जंगलों के उबड़-खाबड़ रास्तों में पैदल चलती रही.

लेकिन गांव पहुंचने से ठीक 14 किलोमीटर पहले जमलो की सांस थम गई.

बीजापुर ज़िले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पदाधिकारी बी आर पुजारी कहते हैं-"हमने जमलो का कोरोना का टेस्ट करवाया लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आई. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी कुछ ख़ास नहीं मिला. मुझे आशंका है कि इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस के कारण बच्ची की मौत हुई होगी. फ़िलहाल बच्ची का बिसरा सुरक्षित रखा गया है, उसकी जांच के बाद शायद कुछ पता चले."

जमलो के पिता आंदोराम मड़कम भी केवल अनुमान लगा सकते हैं कि क्या हुआ होगा. मां सुकमति का रो-रो कर बुरा हाल है. वह किसी भी स्थिति में बात करने लायक नहीं हैं.

जमलो के पिता आंदोराम कहते हैं-"साथ के मज़दूर बता रहे थे कि रात को सब लोगों ने ठीक से खाना खाया और आराम किया था. सुबह जब खाना खा कर सबलोग निकल रहे थे, उसी समय उसुर गांव के पास जमलो के पेट में दर्द हुआ. पता नहीं फिर क्या हुआ हमारी जमलो को और उसने वहीं दम तोड़ दिया."

लॉकडाउन में बेरोजगारी

इस साल फरवरी में गांव के दूसरे रिश्तेदारों की देखा-देखी जमलो भी मिर्च की खेती में तोड़ाई का काम करने के लिये पड़ोसी राज्य तेलंगाना गई थी.

मुलुगू ज़िले के पेरुर में गांव के लोगों को काम मिला. लेकिन दो महीने ही गुज़रे थे कि कोरोना वायरस के कारण मिर्ची के परिवहन का काम बंद हो गया और लॉकडाउन के कारण मज़दूरी पर भी तालाबंदी की मार पड़ने लगी.

जमलो

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इमेज कैप्शन, जमलो के आधारकार्ड की संपादित तस्वीर

बचा कर रखे गये पैसे भी ख़त्म होने लगे. इसके बाद ठेकेदार की सलाह पर सब लोगों ने घर लौटने का फ़ैसला किया.

गांव के लोग बताते हैं कि मुलुगू ज़िला मुख्यालय से से गोदावरी नदी को पार कर भोपालपटनम होते हुये आदेड़ गांव का रास्ता लगभग 200 किलोमीटर के आसपास है. हालांकि पेरुर गांव सीमा से लगा हुआ है. लेकिन लॉकडाउन के कारण कहीं कोई बस नहीं चल रही थी. मज़दूरों के साणने कोई दूसरा साधन भी नहीं था.

ऐसे में गांव के सभी 12 लोगों ने पैदल ही जंगल के रास्ते आदेड़ लौटने का फ़ैसला किया.

ज़िले के कलेक्टर के डी कुंजाम का कहना है कि गांव के लोग चोरी-छुपे जंगल के रास्ते से आ रहे थे, इस बीच जंगल में ही बच्ची की मौत हो गई. ख़बर मिलने के बाद साथ के सभी 11 लोगों को क्वारंटीन किया गया है. इसके अलावा बच्ची की कोरोना जांच भी करवाई गई है लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आई है.

इस बीच राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री सहायता कोष से एक लाख रूपए की आर्थिक सहायता जमलो मड़कम के परिजनों को देने की घोषणा की है.

बीजापुर के पत्रकार रानू तिवारी कहते हैं-"12 साल की बच्ची को आख़िर काम करने के लिये दूसरे राज्य में क्यों जाना पड़ा? पढ़ाई-लिखाई की उम्र में उसे पैसे कमाने की ज़रुरत क्यों पड़ी? सवाल कई हैं. जमलो की मौत के पीछे के कारण तो बाद में सामने आयेंगे. अभी तो एक ही बात दिखाई पड़ रही है कि जमलो व्यवस्था की मौत मारी गई."

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