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वे दिन गए, जब लोग 60 साल की उम्र में रिटायर होने की बातें करते थे। अब तो नई उमर के लोगों की चाल भी नई है। वे चाहते हैं कि रुपये-पैसे के मामले में जल्द से जल्द कुछ ऐसा इंतजाम कर लिया जाए कि किसी दूसरे पर निर्भर न रहना पड़े और फिर अर्ली रिटायरमेंट ले लिया जाए। इसके लिए एक टर्म यूज होता है फायर (FIRE) यानी फाइनैंशल इंडिपेंडेंस एंड रिटायर अर्ली। जॉब मार्केट में भी होड़ बढ़ती जा रही है और कोई भी उस मशक्कत में फंसना नहीं चाहता। ऐसे में वर्कफोर्स में शामिल हो रहे नौजवानों में यह चाहत जोर पकड़ने लगी है कि 40 साल की उम्र तक रिटायरमेंट ले लिया जाए। इस तरह वे जिंदगी का ज्यादा लुत्फ भी ले पाएंगे।

लेकिन फाइनैंशल फ्रीडम की बात करना तो आसान है, इसे हासिल करना बच्चों का खेल नहीं है। इसके लिए बड़े अनुशासन, त्याग और मेंटरिंग की जरूरत पड़ती है। इस बात को आइए एक रियल लाइफ केस के जरिए समझते हैं। साल 2001 की बात है। शिवा (नाम बदला हुआ है) तब 21 साल के थे। कैंपस रिक्रूटमेंट में उन्हें इंफोसिस में जॉब मिल गई। Y2K और डॉटकॉम क्रैश के मामले आईटी प्रफेशनल्स के मन में अभी ताजा थे। IT इंडस्ट्री एक चुनौती भरे दौर से गुजर रही थी। शिवा लकी थे कि उन्हें उनकी पसंद की कंपनी में जॉब मिल गई। एक लाख 40 हजार रुपये सालाना की सैलरी के साथ उन्होंने शुरुआत की। उन दिनों के लिहाज से यह कोई बहुत अच्छी नहीं, तो खराब शुरुआत भी नहीं थी। शिवा ने अपने सीमित संसाधनों का पूरा उपयोग किया। उनकी फाइनैंशल जर्नी में हमारे लिए कई सबक छिपे हैं।

पहले बचाओ, फिर खर्च करो
पहला सबक तो यही है कि खर्च करने से पहले बचाओ। शिवा को मंथली सेविंग्स का बड़ा खयाल रहता था। उन्हें यह आदत अपनी मां से मिली थी। शिवा के पिता का निधन हो चुका था और भारतीय परिवारों की अधिकतर महिलाओं की तरह शिवा की मां इस बात का पूरा ध्यान रखती थीं कि हर महीने एक तय रकम की सेविंग हो जाए। बाकी पैसे से वह घर का खर्च चलाती थीं। बचत भले ही छोटी थी, लेकिन धीरे-धीरे करके जुड़ती गई और वह पैसा शिवा के हायर एजुकेशन में काम आया। शिवा को जल्दी ही यह अहसास हो गया था कि चादर के भीतर पांव समेटे जा सकते हैं। लिहाजा जब उनकी जॉब लगी तो वह भी अपनी मंथली सैलरी का 40 प्रतिशत हिस्सा बचाने लगे। सैलरी का बड़ा हिस्सा आधा महीना बीतते-बीतते खर्च कर डालने वाले दोस्तों और सहयोगियों का असर उन्होंने खुद पर नहीं पड़ने दिया।

फाइनैंशल प्लान जरूरी
फाइनैंशल फ्रीडम के साथ जल्द रिटायर होने की राह में अब बारी आती है फाइनैंशल प्लान की। अधिकतर लोग टैक्स प्लानिंग के लिए इनवेस्ट करना प्रेफर करते हैं। वे प्रोविडेंट फंड और इंश्योरेंस पॉलिसी में पैसे लगा देते हैं। शिवा का रुख इतना कंजरवेटिव नहीं था। उन्हें एक फाइनैंशल एडवाइजर राजन मिले। उन्होंने शिवा को एक अच्छा फाइनैंशल प्लान बनाने में मदद की। इससे यह अंदाजा हुआ कि शिवा को बाकी जिंदगी के लिए अगर फाइनैंशल सिक्योरिटी पानी है तो उन्हें साल 2021 तक कम से कम 2 करोड़ रुपये का इंतजाम कर लेना चाहिए। इसका मतलब यह था कि अगले 20 वर्षों में 15.8 प्रतिशत का रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट होना चाहिए। राजन ने शिवा को समझाया कि फिक्स्ड डिपॉजिट, पीएफ या इंश्योरेंस पॉलिसी के जरिए ऐसा होना मुमकिन नहीं। राजन ने उन्हें इक्विटी मार्केट्स और म्यूचुअल फंड के बारे में समझाया। 2001-02 में म्यूचुअल फंड और इक्विटी मार्केट्स की समझ कम ही लोगों को थी और आमतौर पर इन्हें सट्टेबाजी जैसा दांव समझा जाता था। लेकिन शिवा को म्यूचुअल फंड में निवेश के रिस्क और रिवॉर्ड समझ में आ गए। उन्होंने राजन की बातों और इक्विटी मार्केट्स पर भरोसा जताया। राजन और शिवा ने मिलकर एक इनवेस्टमेंट प्लान बनाया, जिसमें लंबी अवधि के लिए निवेश के नियम लिखे गए। उसमें डेट, इक्विटी, गोल्ड और रियल एस्टेट के लिए भी स्कोप था। आगे मैं बताऊंगा कि इस प्लान से किस तरह की मदद मिली। अभी तो जानते हैं उस तीसरी बात के बारे में, जो जल्द रिटायर होने में मददगार है।

ज्यादा कमाई हो तो ज्यादा निवेश करें
समय के साथ शिवा को जॉब में तरक्की भी मिली। वह विदेश भी गए, जॉब भी बदलीं, ज्यादा बोनस पाया और समय के साथ उनका सैलरी पैकेज बढ़ता गया। साल 2022 में अब वह मिडल मैनेजमेंट का हिस्सा हैं और उनका पैकेज 60 लाख रुपये सालाना है। अब वह शादीशुदा हैं और एक बच्चे के पिता भी। इसी के साथ उनके खर्च भी बढ़े हैं। लेकिन इस पूरी जर्नी में पहले सबक से उनकी नजर कभी नहीं हटी यानी पहले बचाओ, फिर खर्च करो। हर हाल में उन्होंने अपने पैकेज का 40 फीसदी हिस्सा बचाना जारी रखा। पैकेज बढ़ने के साथ उनकी सालाना बचत भी बढ़ती गई।


लक्ष्य के हिसाब से निवेश करें
शिवा की फाइनैंशल जर्नी का चौथा सबक है अपने गोल को ध्यान में रखकर निवेश करना। अपनी जिंदगी में हम सबके कई फाइनैंशल गोल होते हैं। घर खरीदना, कार खरीदना, छुट्टियों पर जाना, बच्चे की हायर एजुकेशन का इंतजाम करना और सुखद रिटायरमेंट की ओर बढ़ना। ये कुछ बड़े लक्ष्य होते हैं। शिवा ने जहां तक हो सका, हर गोल के लिए इनवेस्टमेंट के अलग-अलग बकेट बनाए। इससे इनवेस्टमेंट ज्यादा फोकस्ड हुआ और किसी भी तरह की कमी को दूर करने में भी आसानी हुई। उन्होंने छह महीने तक के खर्च के लिए ऐसा इमर्जेंसी फंड भी बनाए रखा, जिस पर मार्केट में उतार-चढ़ाव का असर न पड़े। यही फंड साल 2009 में उनके बड़े काम आया। तब सब-प्राइम क्राइसिस के बाद शेयर बाजार 40 पर्सेंट तक गिर गए थे। उन दिनों शिवा की कंपनी में भी छंटनी हुई। शिवा भी उसकी चपेट में आए। दूसरी कंपनी में नई जॉब पाने में उन्हें करीब 4 महीने लग गए थे। हालांकि अच्छी बात यह रही कि उन्हें अपने इनवेस्टमेंट्स घाटे में बेचने नहीं पड़े क्योंकि उनके पास एक इमर्जेंसी फंड था।

रिस्क कवरेज कम न पड़े
अब बारी है शिवा की फाइनैंशल जर्नी से मिले पांचवें सबक की। विवाह के बाद शिवा को अहसास हुआ कि उनके परिवार के लिए उनका जीवन फाइनैंशली भी काफी अहम है। तब उन्होंने राजन की सलाह पर टर्म एश्योरेंस और क्रिटिकल इलनेस प्रोडक्ट्स खरीदे। शिवा ने मेडिक्लेम कवरेज नहीं लिया था क्योंकि उनकी कंपनी उनके परिवार के लिए कवर मुहैया करा रही थी। लेकिन 2009 में जब उनकी जॉब छूटी, तब उन्हें लगा कि बेरोजगारी के दौरान अगर कोई मेडिकल इमर्जेंसी आई तो बहुत दिक्कत होगी। इसे देखते हुए उन्होंने आगे चलकर अपने परिवार के लिए एक मेडिक्लेम कवरेज भी लिया।

इनवेस्टर बिहैवियर बनाम इनवेस्टमेंट बिहैवियर
शेयर बाजार जब बुलिश फेज में होता है तो निवेशक आमतौर पर बहुत उत्साहित हो जाते हैं। इसी तरह जब मार्केट मुश्किल दौर में फंसता है तो निवेशक बेयरिश हो जाते हैं। पिछले 20 वर्षों में शिवा ने मार्केट में दो बड़े तूफान आते देखे हैं, एक 2008 में और दूसरा 2020 में। तब उनकी नेटवर्थ 40 पर्सेंट से ज्यादा घट गई थी। इसके अलावा 2006, 2011 और 2018 में तीन और झटके मार्केट को लगे, जब औसतन 20 प्रतिशत गिरावट आई। ऐसे दौर में शिवा के अधिकतर दोस्तों और मीडिया में अफरातफरी का माहौल था, लेकिन शिवा ने संयम बनाए रखा। ऐसा करना आसान नहीं होता, लेकिन शिवा ने वॉरेन बफे और बेंजामिन ग्राहम के बारे में पढ़कर कुछ सबक नोट किए। तेज करेक्शन आए, लेकिन शिवा का पोर्टफोलियो मुश्किल दौर के बाद बढ़ता रहा। राजन के मुताबिक, शिवा ने सबसे अच्छा रिटर्न उन इनवेस्टमेंट्स पर हासिल किया, जो मार्केट के कमजोर रहने के दौरान किए गए थे। शिवा को टफ मार्केट में टफ बने रहने शिवा को फायदा मिला।

एसेट एलोकेशन का रखें ध्यान
शिवा की कहानी का एक और सबक यह है कि एसेट एलोकेशन बहुत सोच-विचार कर करना चाहिए। शिवा ने शुरुआत में जो फाइनैंशल प्लान बनाया था, वह बीच में कई बार बदला गया। शादी होने, बच्चे का जन्म होने, सैलरी बढ़ने जैसे मौकों के साथ शिवा की जरूरतों और संसाधनों में भी बदलाव होता गया। घर और कार खरीदने के अलावा बच्चे के हायर एजुकेशन को ध्यान में रखते हुए फाइनैंशल प्लान में बदलाव किए गए। यहां पर जरूरत आई बकेट स्ट़्रैटेजी की। साथ ही, इक्विटी म्यूचुअल फंड्स के अलावा दूसरे एसेट क्लासेज पर नजर डालने की जरूरत भी आई। रियल एस्टेट में निवेश और कार खरीदने के लिए ईएमआई की गुंजाइश बनाई गई। शिवा ने 2010 में रेडी टु मूव रियल एस्टेट में निवेश किया। उस वक्त गुड़गांव में रियल्टी के भाव नरम थे, लिहाजा शिवा को अच्छी डील मिल गई। 2007 के पीक के मुकाबले तब भाव करीब 20 पर्सेंट नीचे थे। शिवा तब उस प्रॉपर्टी के लिए एक बार में पूरा पेमेंट कर सकते थे। इसके लिए उन्हें अपने इनवेस्टमेंट बेचने पड़ते, लेकिन इक्विटी मार्केट्स के दमखम को देखते हुए शिवा और राजन ने तय किया कि प्रॉपर्टी के लिए लोन लिया जाए।


आज 21 साल की कड़ी मेहनत के बाद शिवा की फाइनैंशल नेटवर्थ 3 करोड़ 63 लाख रुपये की है। इसमें शिवा के बेटे को हायर एजुकेशन के लिए अगले पांच वर्षों में कुल 20 लाख रुपये की जरूरत होगी। शिवा अगर आज रिटायर होने का फैसला कर लें तो 7 प्रतिशत की औसत महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए वह अगले 40 साल तक बड़े आराम से अपने परिवार के लिए एक लाख रुपये महीने के खर्च का इंतजाम कर सकते हैं।

शिवा की यह फाइनैंशल जर्नी शानदार है और अगर सावधानी से कदम उठाए जाएं तो इसे दोहराया भी जा सकता है।
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(लेखक सक्षम वेल्थ प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं)
आवाज़ : मोहित सिन्हा
*ये लेखक के निजी विचार हैं
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